विकलांग को दिव्यांग कहना अति विशिष्ट विचार है. वास्तव में जिस मानव को भगवान किसी अंग से वंचित कर इस धरा पर भेजते हैं वे मानव दिव्य ही होते हैं जो विलक्षण प्रतिभा से कुछ कर गुजरते हैं. पुराणों, इतिहासों और आधुनिक समाज में ऐसे अनेकों विभूति हुए हैं जो विकलांग थे पर किसी न किसी खास अंगों के कारण दिव्यांग सिद्ध हुए. अनेक विद्वान , अनेक विदुषी इस धरा पर एक अंग न होते हुए भी अपनी किसी खास अंग के माध्यम से अपनी अमिट छाप छोड़ चुके हैं. दिव्यांग शरीर वाले शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं लेकिन ज्ञान,बुद्धि,तर्कशक्ति और तेजस्विता के मामले में किसी से भी कम नहीं होते, जिसका उदाहरण पुराण तथा इतिहासों में उल्लेखित है. इस सन्दर्भ में अष्टावक्र को स्मरण करना समीचीन रहेगा. ‘अष्टावक्र गीता एवं अष्टावक्र संहिता’ सदृश प्रसिद्द ग्रन्थ अष्टावक्र नामक दिव्यांग से सम्बंधित है. सूरदास , ऑंखें न होते हुए भी अपनी विलक्षण प्रतिभा से कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं . उनकी गाथा युग-युगांतर तक हर मानव के स्मृतिपटल पर विराजित रहेगा. नेत्रहीन विद्वान श्री गिरिधर मिश्र जो रामभद्राचार्य के नाम से विख्यात हैं, वे ऐसी श्रुति-स्मृति के प्रतिभा से युक्त हैं की अपने पितामह से केवल सुनकर ही पांच वर्ष की आयु में गीता और सात वर्ष की आयु में सम्पूर्ण मानस कंठस्थ कर लिया. वे २२ भाषा बोलते हैं . कई भाषाओँ में आशु कवि हैं. तुलसीदास पर भारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिने जाते हैं. जबकि न तो वे पढ़ सकते हैं, न लिख सकते हैं न ही ब्रेल लिपि का प्रयोग करते हैं, वरन सुनकर सीखते हैं और बोल कर रचनाएँ लिखवाते हैं. उन्होंने अस्सी से अधिक ग्रंथों की रचना की है. ऐसी ही प्रतिभावान अरुणिमा सिन्हा हैं. जो कृत्रिम पैर के सहारे माउंट एवेरेस्ट पर पहुँचने वाली प्रथम महिला होने का गौरव प्राप्त किया है. उन्हें कोई अपांग कैसे कह सकता है? वास्तवमें वे दिव्यांग ही तो हैं. हम सुधा चंद्रन को कैसे भूल सकते हैं , कृत्रिम पैर से जो वो नृत्य करती हैं तो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं. इरा सिंघल को देखें , उन्होंने अपनी प्रतिभा से सभी को चौंका दिया है. प्रसिद्ध वैज्ञानिक ‘हॉकिन्स’ कृत्रिम यंत्रों के सहारे सुनते , पढ़ते हैं लेकिन भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में दुनियां के सबसे श्रेष्ठ वैज्ञानिक माने जाते हैं. प्रधानमंत्री मोदीजी ने कहा -“जब किसी को विकलांग कहकर परिचय करवाया जाता है तो नज़र उस अंग पर जाती है जो कम नहीं करता जबकि असलियत यह है कि विकलांग के पास भी ऐसी शक्ति होती है जो आम लोगों के पास नहीं होती . इनके पास दिव्य विशेषता होती है. इनके अंदर जो विशेष शक्ति है, उसे मैं दिव्यांग के रूप में देखता हूँ.” असल विकलांग तो वह है जो शारीरिक रूप से सम्पूर्ण होते हुए भी कर्म के बिना लूला-लंगड़ा,ज्ञान के बिना अँधा, प्रेम के बिना हृदयविहीन और बुद्धि के बिना निष्क्रिय होता है. प्रधानमंत्री मोदीजी द्वारा उनमें दिव्य विशेषता देखकर , दिव्यांग जैसे शब्दों से उन्हें सुशोभित करना अति प्रशंसनीय है . जिस प्रकार आकाश से गिरा हुआ जल किसी न किसी रास्ते से होकर सागर में पहुँच ही जाती है, उसी प्रकार दिव्यांग नाम से अभिहित करना उन सब के सम्मान में इजाफा ही है. लेकिन क्या यह मरहम पर्याप्त है? केवल दिव्यांग नाम दे देने से मानव सोच में परिवर्तन आ जायेगा? आज भी उपयुक्त सम्मान उन्हें नहीं मिलता जिनके वे हक़दार हैं. कुछ लोग उनके अपांग होने का नाज़ायज़ लाभ उठाते हैं, यहाँ तक की परिवार वाले उनसे भीख मंगवाते है और अपने अर्थोपार्जन का जरिया बनाते हैं. दिव्यांगों में छिपी अतिरिक्त प्रतिभा एवं अतिरिक्त गुणों को पहचान कर उनको ऐसे कौशल की विकास पर अगर ध्यान दिया जा सके तो शायद हम उनके प्रति कुछ न्याय कर पाएंगे. हर दिव्यांग में खास अंग प्रखर होता है और उनसे किस प्रकार उनमें छिपी प्रतिभा को उभारा जा सकता है, संवारा जा सकता है इसकी खास व्यवस्था अगर सरकार करे तो निश्चित ही उन दिव्यांगों के जीवन में बहार आ जायेगा और फिर उस विकलांग में लोगों को भी प्रधानमंत्रीजी की तरह ही दिव्यांग ही दिखेगा न की विकलांग.
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