प्रत्येक वर्ष 3 दिसम्बर को विश्वभर में ‘अन्तर्राष्ट्रीय व

दिव्यांग दिवस’ मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य है शारीरिक अथवा मानसिक रूप से अशक्त लोगों की सोच को सकारात्मक कर एवं उनके साथ-साथ समाज के सभी वर्गों की भागीदारी व सहयोग को प्रोत्साहन देकर उन्हें विकास की आम धारा में लाना ।

वास्तव में, मानव समाज सभ्यता के प्रारम्भिक चरण से ही दिव्यांग से आ रहा है और आज जब हम 21वीं सदी में पहुँच चुके हैं, तब भी दिव्यांग की स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं हुए हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, वर्तमान समय में विश्वभर में एक अरब के आस-पास दिव्यांग लोग हैं ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी देशों में विकलांगों की समस्याएँ अलग-अलग होने के बावजूद उनकी मूल समस्याएँ एक जैसी ही हैं ।  सभी देशों में दिव्यांग के साथ भेदभाव किया जाता है और उन्हें समाज से अलग करके देखा जाता है ।

सभी देशों में दिव्यांग को शिक्षा, रोजगार, यातायात आदि सुविधाओं तक अपनी पहुँच बनाने में समस्याएँ झेलनी पडती हैं, जिसके कारण वे शैक्षिक, आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में अत्यन्त पिछड़ जाते है और अपना स्वास्थ्य भी खो देते हैं । अन्धेपन व बधिरता से ग्रस्त हेलेन केलर के शब्दों में- ”दृष्टिहीनों की प्रगति में मुख्य बाधा दृष्टिहीनता नहीं, बल्कि दृष्टिहीनों के प्रति समाज की नकारात्मक सोच है ।”

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में विकलांगों की संख्या 2.68 करोड थी, जो कुल आबादी का 2.21% है । इस जनगणना में बिकलाँगता को दृष्टिहीनता, बधिर, मूक, चलने-फिरने में बिकलाँग, मानसिक मन्दता, मानसिक बीमारी, अन्य कोई एवं बहु-बिकलांगता जैसे आठ प्रकारों में बाँटा गया था ।  वर्ष 1996 में दिव्यांग के प्रति समाज के दायित्वों के निर्धारण हेतु विकलांग व्यक्ति (समान अवसर अधिकारों का संरक्षण एवं पूर्ण सहभागिता) अधिनियम पारित किया गया, जिसे वर्ष 1996 में लागू कर दिया गया ।

इस अधिनियम का उद्देश्य दिव्यांग के प्रति किए जाने बाले भेदभाव को समाप्त कर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ना था । इसके अन्तर्गत वर्ग (ग) एवं (घ) पदों की नियुक्ति में दिव्यांग हेतु 3% आरक्षण को स्वीकृति प्रदान की गई, साथ-ही-साथ वर्ग (क) एवं (ख) पदों में भी दिव्यांग हेतु आरक्षण की प्रतिशतता बढाने का उल्लेख किया गया ।

इस अधिनियम में 18 वर्ष से कम आयु के दिव्यांग बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा देने की व्यवस्था की गई । इसके अन्तर्गत दिव्यांग को मापने के लिए मापदण्ड भी निर्धारित किए गए, जिनमें स्पष्ट किया गया कि ऐसा कोई भी व्यक्ति, जिसमें 40% से अधिक विकलांगता होगी, दिव्यांग माना जाएगा, पर उसकी दिव्यांगता चिकित्सा बोर्ड द्वारा प्रमाणित होनी चाहिए ।

इस अधिनियम के मुख्य प्रावधानों में दिव्यांग से सम्बद्ध अनुसन्धान कार्य एवं संरक्षण कार्य करना, विकलांगता को रोकने वाली प्रक्रियाओं को प्रोत्साहन देना, जैसे-सार्वजनिक स्थानों, शिक्षा, रोजगार आदि क्षेत्रों में मिलने बाली सुविधाओं को बाधारहित तरीके से उपलब्ध कराना, विकलांगता के कारण जानने हेतु वर्ष में कम-से-कम एक बार बच्चों की पूर्ण जाँच करना, बच्चों को दिव्यांग होने से बचाने हेतु गर्भावस्था, प्रसव एवं जन्म के पश्चात माता व शिशु की देखभाल करना आदि हैं ।

निश्चय ही दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार, संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) कानून के लागू होने और केन्द्र व राज्य सरकारों की ओर से विकलांगता को रोकने हेतु देशभर में किए गए प्रयासों के परिणामस्वरूप विकलांगता के मुद्दे और विकलांगों की समस्याओं के प्रति आम लोगों का ध्यान अकृष्ट हुआ है और विकलांग लोग भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुए हैं, पर देश में अभी भी विकलांगों को बस, ट्रेन आदि बाहनों, सार्वजनिक भवनों, शिक्षण संस्थानों, कार्यालयों आदि में प्रवेश आदि की समुचित सुविधाएं उपलब्ध नहीं है ।

यहाँ के गाँवों की स्थिति तो और भी बदतर है । देश के मेट्रोपोलिटन शहरों में जहाँ ये सुविधाएँ थोडी-बहुत है भी, वहाँ दिव्यांग की समस्या के समाधान हेतु दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन करने के प्रति लोग लापरवाह देखे जाते हैं ।  सभी जनसुविधाओं का लाभ विकलांग व्यक्ति उठा सके, इसके लिए आवश्यक है कि फुटपाथों, बस पडावों, उद्यानों, सार्वजनिक शौचालयों, स्कूलों, कॉलेजों व कार्यालयों में ऐसी व्यवस्था की जाए कि व्हील-चेयर पर बैठा व्यक्ति बिना किसी की मदद के अपने सभी सामान्य कार्यों को सुचारु रूप से पूर्ण कर ले ।

नेत्रहीनों व कमजोर दृष्टि बालों के लिए भी ब्रेल लिपि में चिन्ह व सूचनाएँ उपलब्ध होश चाहिए, किन्तु विकलांगों को उच्च कोटि की सुविधाएँ प्रदान करने के साथ-साथ हमें उनके प्रति अति संवेदनशील दृष्टिकोण भी अपनाना होगा । सर्वोच्च न्यायालय ने सितम्बर, 2014 में केन्द्र तथा राज्य सरकारों को सभी सरकारी नौकरियों में विकलांगों के लिए 3% आरक्षण कोटा निर्धारित करने का निर्देश दिया है ।

दिव्यांग व्यक्ति से सम्बद्ध पीडण्डी अधिनियम, 1995 के पारित होने के 19 वर्षों में विकलांगों को इसका अधिकार न मिलने पर मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ ने निराशा व्यक्त की । केन्द्र सरकार की ओर से विकलांगों को 3% आरक्षण दिए जाने की दलील को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने माना हे कि नियुक्ति एक व्यापक अवधारणा है और केन्द्र इसकी संकीर्ण व्याख्या दे रहा है । सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरी की सभी श्रेणियों में नियुक्ति, प्रतिनियुक्ति तथा पदोन्नति में विकलांगों के लिए आरक्षण की अनुमति दी है ।

खण्डपीठ ने आरक्षण की सीमा से अधिक नहीं होने के सिद्धान्त को भी विकलांगों का उदाहरण देते समय लागू नहीं होने की बात की है । हमारी पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने कहा था- ”विकलांगों को दया नहीं, सहानुभूति की आवश्यकता है । उन्हें दान नहीं, बल्कि अपने अन्य मानव मित्रों की तरह अधिकार चाहिए । यह समस्या केवल कानून से हल नहीं की जा सकती, इसके लिए जनता के व्यवहार में परिवर्तन आवश्यक है ।”

किन्तु वास्तविकता यह है कि आज भारत हर क्षेत्र में विकास कर तेजी से विकसित देशों की श्रेणी में अग्रसर हो रहा है, बावजूद इसके विकलांगों के प्रति हमारे समाज के दृष्टिकोण में अपेक्षित बदलाव नहीं हुए हैं । आज भी भारत में आमतौर पर विकलांगता को पूर्व जन्म के कर्मों से जोड़कर देखा जाता है और विकलांग व्यक्तियों को दया का पात्र समझा जाता है ।

के प्रति समाज के दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाने की आवश्यकता है, तभी वे सामान्य जनों की तरह विकास की मुख्य धारा से जुड़कर समाज के निर्माण में सशक्त भूमिका निभाएंगे । फिर यह दिन दूर न होगा, जब ब्रिटेन के वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग और अमेरिका की हेलेन एडम्स केलर की तरह शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद हमारे देश के लोग भी मानव कल्याणार्थ महान् कार्य करके देश-दुनिया में अपनी विजय-पताका फहराएंगे ।

आज हेलेन केलर की कही इस बात से हम सबको सीख लेने की आवश्यकता है- ”एक द्वार के बन्द होते ही दूसरा द्वार खुल जाता है, पर हम प्रायः बन्द द्वार को ही इतनी देर तक देखते रह जाते है कि उस द्वार की तरफ़ हमारा ध्यान ही नहीं जाता, जो हमारे लिए खुला होता है ।” ब्रह्माण्ड के रहस्यों को खोलने बाले स्टीफन हॉकिंग ने भी कहा है- ”मुझे गर्व होता है, जब लोगों की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है ।”

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Prayas India Charity foundation

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PRAYAS is not just an effort but an effort with a mission. It holds a mission to have equity and inclusion in Competition where all specially-abled children or youth could harness their potential and excel in their favourite events. Our Federation has started this initiative to boost the morale of every differently-abled person with sportsman spirit. We would endeavour to provide opportunities to these children in various fields as per their special and unique talent so that they could feel connected with the mainstream. Prayas, our federation is inching towards this goal and wants to involve each para-athlete and specially-abled person to be part of the federation in a more congenial way. We all are uniquely talented and have a desire to make a name and be remembered. We all dream and want our dreams to get fulfilled. Dreams are unbiased so is Prayas India. Prayas charity foundation's main aim is to promote the talent of unrecognised and differently-abled children. It is easier for a normal person without any disability and gender-biased to get through the competitions without any challenge. Keeping with its mission and goals, Prayas India is going to provide a competitive platform to the transgender community to harness their latent potential. It is just an endeavour to bring forward human talent irrespective of gender. *Acceptance and empathy* are our core values to incorporate children with all sorts of special needs Goals of our Federation: 👉To equip special needs people through capacity building in self-help and empowerment skills. 👉To empower special needs people through vocational skills for self-sustenance and income generation. 👉To provide early intervention therapies for special needs children. 👉To build tolerance, understanding, and support of special needs people. 👉To provide counselling and guidance to special needs children, their parents, families, and the community. 👉To promote home and community-based therapy and rehabilitation interventions. 👉To provide suitable education services for children with disabilities like sign language. 👉To provide daycare and nursery services to children for integration of special needs children. 👉To promote recreation, games, and sports for therapeutic and rehabilitative procedures. 👉 To provide information to the community to enhance the understanding of disability to reduce stigma and rejection of Special Children and Special People: ‘Equipped Special Needs People For Full Community Integration’. 👉 *We do Customised Care* Our knowledgeable staff meets each child on their level and provides them with individualized lessons and customized care to help them succeed.

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